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सबसे पहले यह बात खुले मन से जान लीजिए की कोई भी एडिक्ट यानी के नशेड़ी बुरा इन्सान या पापी या पागल इन्सान नहीं है। वह एक बीमार इन्सान है और वह एडिक्शन की बीमारी का शिकार बन चुका है। तो इस बीमारी के ऊपर अगर कुछ इलाज किया जाए तो बीमारी में से बाहर निकल सकता है। शराब के नशे के अंदर फंसे हुए इंसान को हम शराबी कहते हैं लेकिन वह शराबीपन यानी के एल्कोहोलिजम बीमारी का शिकार बना हुआ है और कोई भी किसी भी प्रकार के ड्रग के नशे के अंदर फंसा हुआ इंसान ड्रग के एडिक्शन की बीमारी का शिकार बना हुआ है। और यह बीमारी कायम, हमेशा, परमानेंट,शक्तिशाली और प्रगतिशील रहने वाली है। जैसे कि डायबिटीज की बीमारी ब्लड प्रेशर की बीमारी मरते दम तक रहती है, बस वैसे ही यह बीमारी भी मरते दम तक रहने वाली है इसलिए उसका इलाज मरते दम तक चालू रहना चाहिए, तोही कोई भी एडिक्ट इंसान के जीवन को परिवर्तन मिलता जाएगा। इसको कहते हैं सुधार की प्रक्रिया यानी के रिकवरी की प्रक्रिया। मतलब एक बार का एडिक्ट मरते दम तक का एडिक्ट ही रहने वाला है। बस अपने आप को नशे से दूर कैसे रखा जाए वही सीखते रहना है।
तो अब यह नशेड़ी पनकी (एडिक्शन की) बीमारी के बारे में कुछ जानने का प्रयत्न करते हैं। पहले तो यह बात अनुभवों से साफ हो चुकी है कि नशेड़ी-पन की बीमारी मन,शरीर और आत्मा को लग चुकी होती है। पहले मन की हालत के बारे में देखा जाए तो कोई भी इंसान जो एडिक्ट बन गया है उसके मनको नशे के बगैर रहना बहुत ही कठिन प्रतीत होता है, और नशे के बगैर बेचैन,चिड़चिड़ा और असंतुष्ट और अंदर से बहुत ही गहरा खालीपन महसूस करता रहता है । उनके मन की ऐसी अवस्था जिसको हम एक मानसिक बीमारी ही कह सकते हैं, और जब तक वह थोड़ा सा भी नशा न कर लेवे तब तक उसको राहत और शांति नहीं मिलती और थोड़ा नशा कर लेने के बाद उसे तुरंत ही राहत और शांति का अनुभव हो जाता है। जिसे मानसिक तलब या mental obsession कहा जाता है।
लेकिन बात यहां तक रूकती नहीं है। क्योंकि उसके बाद शरीर को लगी हुई बीमारी प्रकट होती है जिसे फिजिकल एलर्जी या शारीरिक एलर्जी कहते हैं। तो भले ही थोड़ा सा नशा करके उसके मन को राहत और शांति मिल भी जाए लेकिन शरीर में जो शारीरिक एलर्जी निर्माण होती है उनकी वजह से उनमें और ज्यादा नशा करने का जुनून बहुत ही शक्तिशाली रूप में कार्यरत होता है। शरीर का क्रेविंग इतना शक्तिशाली होता है कि उसे मजबूरन और नशा करना पड़ता है। वह चाहता नहीं है कि मेरी जिंदगी बिगड़े मेरी हालत बिगड़े मेरी बर्बादी बढे। कोई भी एडिक्ट हमेशा माप में नशा करके उसका सही आनंद लेने का ही विचार रखता है। लेकिन यह बीमारी का जो शरीर वाला हिस्सा यानी शारीरिक एलर्जी है, वह उसे जबरदस्ती और ज्यादा नशा करने के लिए यानी की जरूरत से ज्यादा नशे के अंदर फंसा के रखता है। इसलिए वह मानसिक तलब और शारीरिक एलर्जी के बीच में इतना फंसा हुआ रहता है कि, उसे अपना नशा निरंतर चालू रखना ही पड़ता है, नहीं तो वह जी नहीं पाएगा ऐसा उसे लगता है।
तो यह बात साबित होती है कि मानसिक तलब के कारण वह नशे के बगैर रह नहीं पाता और शारीरिक एलर्जी के क्रेविंग के कारण जरूरत से ज्यादा या बेशुमार नशा करना पड़ता है, जिससे उसका पतन होता जाता है। इसलिए एक अवस्था नशेड़ी के जीवन में ऐसी आ जाती है कि नशे के साथ और नशे के बगैर जीना उसके लिए बहुत ही कठिन हो जाता है, तो ऐसी स्थिति को बीमारी ना कहा जाए तो और क्या कहा जाए! जो मानसिक रूप से लग चुकी है,शारीरिक रूप से लग चुकी है और आत्मा को भी लग चुकी है। जो आत्मा को लगी हुई बीमारी को आध्यात्मिक पतन या आध्यात्मिक शून्यता के रूप में नाम दिया गया है। आध्यात्मिक पतन का मतलब है इंसान होते हुए भी इंसानियत में वह कम पड़ रहा है। सत्सक-विवेक-बुद्धि जो एक स्वस्थ मनुष्य की होती है ऐसे नशेड़ी इंसान की कमजोर हो चुकी होती है। और अंदर से उसकी आत्मशक्ति भी बहुत ही कमजोर हो चुकी होती है।
तो चलो अब आध्यात्मिक रूप से पतन या आध्यात्मिक बीमारी के बारे में जानने की कोशिश करते हैं जिसकी वजह से एडिक्ट का पूरा जीवन आंतरिक रूप से और बाह्य रूप से अस्त-व्यस्त हो गया है, और होता जाता है। तो किस तरह की अस्त-व्यस्तता उसको अंदर से खाई जाती है। जो उसको खुद को भी समझ में नहीं आता है, इसलिए वह ना किसी को कह पता है और ना सह पता है। आध्यात्मिक बीमारी के रूप में अंदरूनी अस्त-व्यस्तता के कुछ लक्षण हम देखते है।
तो अब यह बात साफ समझ में आती है कि उसका जीवन अस्तव्यस्त हो गया है और अनियंत्रित भी हो गया है जिसको एक आध्यात्मिक पतन या आध्यात्मिक शून्यता का स्वरूप कह सकते हैं। इसलिए वह बिना नशे के बेचन, चिड़चिड़ा और असंतुष्टि में ही अपने आप को महसूस करता है, और उसमें से राहत और शांति पाने के लिए मजबूरन थोड़ा सा नशा करने के लिए उसे जाना पड़ता है। थोड़ा नशा करने के बाद शरीर का क्रेविंग या फिजिकल एलर्जी या शारीरिक एलर्जी जागृत होती है और उसे और ज्यादा और ज्यादा और ज्यादा नशे करते रहना पड़ता है बेहोशी तक! और उसका जीवन इसकी वजह से ज्यादा अस्तव्यस्त होता जाता है। वास्तविकता को वह जेल नहीं पाता इसलिए उसको नशे के पास मजबूरन जाना पड़ता है तो जीवन की अस्तव्यस्तता और नशा उसके विपरीत नशा और जीवन की अस्तव्यस्तता उसके जीवन में एक विषचक्र की तरह गतिमान ही रहता है। और उसका आखरी अंजाम बर्बादी को बढा-बढा कर अकाल मौत तक यह घिनौनी प्रक्रिया उसके जीवन में रुकती नहीं है।
तो अब जाहिर है कि उनके जीवन की अस्तव्यस्तता को लेकर उनका मन बीमार हो चुका है,अस्वस्थ हो चुका है तो मानसिक परिवर्तन लाना वही एकमात्र इलाज है। तो मानसिक परिवर्तन लाने के लिए आध्यात्मिक शून्यता के ऊपर एक आध्यात्मिक कार्य अपने आप को करवाना जरूरी बन जाता है, तो ही उसका मानसिक परिवर्तन हो सकता है। मन बदलेगा तो उसकी जिंदगी बदलेगी उसकी दुनिया बदलेगी और नशे से दूर आसानी से रह पाएगा और जीवन का सही आनंद जैसे-जैसे अपने आप को बदलते जाएगा वैसे-वैसे लेते जाएगा। अपने व्यक्तित्व और मानसिकता में बदलाव की प्रक्रिया में निरंतर रहकर एक सच्चा आध्यात्मिक विकास की ओर अपना जीवन को आगे बढाते जाएगा तो बाकी सब विकास अपने आप होते जाएंगे। नशे से दूर रहना बहुत ही आसान बन जाएगा। उसके लिए बारह कदम का कार्यक्रम(प्रोग्राम) करना बहुत जरूरी है।
तो आध्यात्मिक कार्य के रूप में यहां पर 12 कदमों का कार्यक्रम काम करता है। जिसको एक आध्यात्मिक कार्यक्रम कहते हैं धार्मिक नहीं आध्यात्मिक यानी एक स्वाध्याय, आध्यात्मिक स्वाध्याय और यह बारह कदम नीचे बताए गए हैं।
तो आध्यात्मिक कार्य के रूप में यहां पर 12 कदमों का कार्यक्रम काम करता है। जिसको एक आध्यात्मिक कार्यक्रम कहते हैं धार्मिक नहीं आध्यात्मिक यानी एक स्वाध्याय, आध्यात्मिक स्वाध्याय और यह बारह कदम नीचे बताए गए हैं।
बहुत महत्व की बात - कोई भी एडिक्ट यह 12 कदमों का कार्यक्रम को एक बार करके समझ लेता है। फिर भविष्य मे कभी भी वापस किसी कारणवश उसके जीवन में फिर से नशा आ जाता है। तो एक बात देखी गई है कि वह पहले जैसा नहीं रह सकता, क्योंकि उसको एक सच्ची जागृति मिल चुकी है और उसके जीवन में आया हुआ नशा उसे एक नया सबक सिखाता है। नशा उसके लिए एक बेहतर वकील बन जाता है। और फिर से इस कार्यक्रम के अंदर पहले से ज्यादा विश्वास के साथ चलना शुरू कर सकता है। यानी कोई पत्थर को तोड़ने के लिए एक हथोड़ा मारो, अगर नहीं टूटता है तो दूसरा मारो तीसरा मारो कभी ना कभी वह टूट सकता है। कोई जल्दी टूटता है तो कोई थोड़े देर से। लेकिन एक बात सच है कि हर एक हथौड़े उस पत्थर को कमजोर बनाते जाते हैं। इसलिए हर एक हथौड़े के वार को हम नजर अंदाज नहीं कर सकते।
१. नशे से मिलने वाले अस्थाई शारीरिक आनंद का अनुभव उठाने के लिए
२. किसी समूह ( दोस्तों )का हिस्सा बनने के लिए वो उस समूह की आदतों को अपना लेते हैं
३. मानसिक और शारीरिक दर्द से निपटने के लिए
४. अकेलेपन को लड़ने के लिए
५. जिन लोगों ने बचपन से उसका इस्तेमाल करते हुए बड़ों ( परिवार में या समाज में) को देखा होता है वो कम उम्र में ही सीख जाते है
६. कुछ लोगों के व्यक्तित्व में आवेगशीलता और जोखिम उठाने की प्रवृत्ति होती है उन्हें नशे की आदत लगने की सम्भावना ज्यादा हो सकती है
शुरुआत किसी भी कारण से हो एक बार नशे की लत लग जाती है उसे बाहर निकलना कठिन होता है।
बहुत बार लोग एक पहले अनुभव के लिए शुरू करते हैं और उसमें फंसते चले जाते हैं।
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1.-विषचक्र | |
2.-विषचक्र | |
3.-विषचक्र | |
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7.-विषचक्र |
12th step program its helpful for me